a red background with a black border

दुर्गा पाठ -दुर्गा सप्तशती

दुर्गा सप्तशती (जिसे चण्डी पाठ भी कहा जाता है) हिन्दू धर्म में एक प्रमुख धार्मिक ग्रंथ है,
जो देवी दुर्गा की महिमा का वर्णन करता है। इसमें 700 श्लोक (शप्तशती) हैं और
यह मार्कण्डेय पुराण के अंदर आता है। इस ग्रंथ का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि
के समय किया जाता है, और यह शक्ति पूजा का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है।

दुर्गा सप्तशती तीन मुख्य भागों में विभाजित है:

  1. प्रथम चरित्र – महाकाली का महात्म्य

  2. मध्यम चरित्र – महालक्ष्मी का महात्म्य

  3. उत्तम चरित्र – महासरस्वती का महात्म्य

दुर्गासप्तशती का आरम्भिक श्लोक:

ॐ श्री दुर्गायै नमः।

  1. अथ ध्यानम्
    ॐ जटाजूटसमायुक्तांardripाथाजूटसमायुक्तां सकलादिव्याभरणोपेतां
    सर्वाङ्गपरिपूर्णां भवानीं ध्यायामि।

  2. देवी कवचम्
    ॐ अस्य श्री चण्डिकाकवचस्य।
    ब्रह्मा ऋषिः। अनुष्टुप छन्दः।
    चामुण्डा देवता। अङ्गन्यासोक्तमातरोबीजम्,
    दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्।

कुछ प्रमुख अध्याय:

  1. माधु और कैटभ वध: इसमें भगवान विष्णु की निद्रा से जागृति और मधु व कैटभ नामक राक्षसों के वध का वर्णन है।

  2. महिषासुर मर्दिनी: यह अध्याय महिषासुर के वध का वर्णन करता है, जिसमें देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को पराजित कर उसे मार डाला।

  3. रक्तबीज वध: इस अध्याय में देवी काली द्वारा रक्तबीज नामक राक्षस का वध होता है, जो अपनी प्रत्येक बूंद से नए राक्षस उत्पन्न कर सकता था।

दुर्गा सप्तशती के पाठ से होने वाले लाभ:

  • यह पाठ भक्तों को नकारात्मक शक्तियों से बचाता है और जीवन में शांति, समृद्धि और सुरक्षा प्रदान करता है।

  • मन और आत्मा को शुद्ध करता है और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।

  • इसे विशेष रूप से नवरात्रि और अन्य शुभ अवसरों पर किया जाता है, जब लोग देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए इसका पाठ करते हैं।

दुर्गा सप्तशती का पाठ ध्यान, श्रद्धा और पूर्ण समर्पण के साथ किया जाता है, जिससे देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।

नवरात्रि पूजा

नवरात्रि पूजा माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा और स्तुति का पर्व है, जो साल में दो बार (चैत्र और शारदीय) मनाया जाता है।
यह पर्व नौ दिनों तक चलता है और इसमें भक्त माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत, पूजा और ध्यान करते हैं।
यहाँ नवरात्रि पूजा की विधि बताई गई है:

नवरात्रि पूजा विधि:

  1. कलश स्थापना (घट स्थापना):

    • नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापित किया जाता है, जो माँ दुर्गा की ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक होता है।

    • साफ मिट्टी का बर्तन लें और उसमें जौ (या गेहूं) बोएं।

    • जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें और उसके ऊपर आम के पत्ते रखें। कलश के ऊपर नारियल रखें और उसके चारों ओर मौली (पवित्र धागा) बाँधें।

    • इस कलश की स्थापना शुभ मुहूर्त में की जाती है।

  2. माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें:

    • पूजा स्थल पर माँ दुर्गा की मूर्ति या चित्र रखें।

    • उनके सामने दीपक जलाएँ और आसन पर बैठकर ध्यान करें।

  3. दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्य का पाठ:

    • नवरात्रि के दौरान दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। यह पाठ माँ दुर्गा की महिमा और शक्ति का वर्णन करता है।

    • इसके अलावा माँ दुर्गा के 108 नामों का जाप या स्तोत्र भी किया जा सकता है।

  4. नवदुर्गा की पूजा:

    • हर दिन माँ दुर्गा के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। उनके नौ रूप हैं:

      1. शैलपुत्री (पहला दिन)

      2. ब्रह्मचारिणी (दूसरा दिन)

      3. चन्द्रघण्टा (तीसरा दिन)

      4. कूष्माण्डा (चौथा दिन)

      5. स्कन्दमाता (पाँचवां दिन)

      6. कात्यायनी (छठा दिन)

      7. कालरात्रि (सातवां दिन)

      8. महागौरी (आठवां दिन)

      9. सिद्धिदात्री (नौवां दिन)

  5. आरती और प्रसाद:

    • माँ दुर्गा की पूजा के बाद आरती की जाती है। घी या तेल का दीपक जलाकर माँ की आरती गाएं।

    • पूजा के अंत में भक्तों को प्रसाद बाँटें।

  6. कन्या पूजन (अष्टमी या नवमी पर):

    • नवरात्रि के आठवें या नौवें दिन कन्या पूजन का आयोजन किया जाता है।

    • नौ कन्याओं (जो माँ दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक हैं) को भोजन कराएं |

woman in red and gold floral dress
woman in red and gold floral dress

दुर्गासप्तशती (चण्डी पाठ) देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का वर्णन करती है। इसे सप्तशती इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसमें 700 श्लोक हैं। इसका पाठ नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से फलदायक माना जाता है। दुर्गासप्तशती के पाठ से मन, शरीर, और आत्मा की शुद्धि होती है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है। इसमें तीन प्रमुख अध्याय होते हैं, जिन्हें चरित्र कहा जाता है:

  1. प्रथम चरित्र – महाकाली की कथा

  2. द्वितीय चरित्र – महालक्ष्मी की कथा

  3. तृतीय चरित्र – महासरस्वती की कथा

यहां दुर्गासप्तशती के कुछ प्रमुख श्लोकों का प्रारंभिक भाग दिया गया है:

1. अर्गला स्तोत्रम्:

ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अन्नपूर्णे सदापूर्णे शङ्करप्राणवल्लभे।
ज्ञानवैराग्यसिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वति॥

2. कीलकम्:

ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। श्रीमहासरस्वती देवता।
ऐं बीजम्। सौः शक्तिः। क्लीं कीलकम्।

अर्थ: शिव जी ऋषि हैं, अनुष्टुप् छंद है, देवी महासरस्वती पूजनीय हैं, 'ऐं' बीज है, 'सौः' शक्ति है, और 'क्लीं' कीलक है। इस मंत्र का प्रयोग दुर्गासप्तशती के दौरान शत्रुओं के नाश और विपत्तियों से मुक्ति के लिए किया जाता है।

3. अध्याय 1 – मधु और कैटभ का वध (प्रथम चरित्र)

ॐ ॐ नमश्चण्डिकायै॥

ऋषिरुवाच–
सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।
निःशामयेत्स तन्माहुर्भृगुप्रवरवादिनः॥

प्रथम चरित्र देवी महाकाली की कथा है, जिसमें मधु और कैटभ नामक असुरों का वध करने का वर्णन किया गया है। यह कथा भगवान विष्णु के योगनिद्रा में होने और देवी के आह्वान द्वारा असुरों को परास्त करने के बारे में है।

4. अध्याय 2 – महिषासुर मर्दिनी (द्वितीय चरित्र)

ॐ ॐ नमश्चण्डिकायै॥

ध्यानम्
ॐ खड्गं चक्रगदेषुचापपरिघान् शूलं भुशुण्डीं शिरः।
शङ्खं सन्दधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्॥

अर्थ: इस अध्याय में देवी महालक्ष्मी द्वारा महिषासुर नामक दैत्य का वध होता है। देवी ने अपनी शक्तियों से महिषासुर के आतंक से पृथ्वी और स्वर्गलोक को मुक्त कराया।

5. अध्याय 5 – देवी स्तुति (तृतीय चरित्र)

ॐ नमश्चण्डिकायै॥

ऋषिरुवाच–
जयन्ति मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा शिवा क्षमा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

इस अध्याय में देवताओं द्वारा देवी की स्तुति की जाती है और उनसे राक्षसों का संहार करने का अनुरोध किया जाता है।

दुर्गासप्तशती का पाठ करते समय श्रद्धा और पूर्ण भक्ति भाव होना आवश्यक है। इसे शुद्ध मन और पवित्र वातावरण में पढ़ना चाहिए। जो भी श्रद्धालु नवरात्रि के दौरान इसका पाठ करता है, उसे देवी की कृपा और आशीर्वाद मिलता है।